Byandu Gaudi (ब्योन्दु गौड़ि) - Garhwali Kavita by Jagdamba Chamola

Garhwali Kavita by Jagdamba Chamola

Byondu Gaudi (ब्योन्दु गौड़ि)

Garhwali Kavita by Jagdamba Chamola
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जब, ब्योन्दु गौड़ि ज्वान छै
स्या खर्क मंकै ठांण छै
रूप की बन्दोल छै स्या
द्यबतौं की धियांण छै

ढंग ढाळ अंग रंग
सभि गुण्वीं खांण छै
स्या नाज सीं नवाण छै स्या
प्यार सी पछांण छै


स्या चांदों मंकै चांद छै
स्या रूप गुण्वीं खांण छै
द्यो अन्द्वार पांण छै स्या
भाग मा भग्यान छै

छ्वट्टा बड़ा सैरि मौ कि
जिकुडि परै जान छै
छौ छलार धांण छै
जब ब्योन्दु गौड़ि ज्वान छै

स्या ऊमि जन ढिस्वाळ छै
स्या कौणि जन तिर्वाळ छै
ब्योन्दु गौड़ि ज्वान छै त
प्यौड़ा मा बग्वाळ छै

लड़छड़ि यन जन
धौळि जन गंगाळ छै
खिल खिल्यां रूप मा स्या
चौंळौं सी अंज्वाळ छै

दिख्यण मा मयाळ छै स्या
लैणा मा पड्याळ छै
गौंत म्वोळ पांच गर्व
द्यबतों मू अग्याळ छै

मन्ख्यों तैं भी सभि धांणि
दूध छै दुधाळ छै
घौर मुंकौ सार छै स्या
बौण मा बुग्याळ छै

पूरा हमारा यपुन तैंकि
जांण छै पछांण छै
संग्ति हाम धाम छै
स्या, बड़्वी सी बौराण छै

म्योळा मा सजीं धजीं
स्या चूड़्यों सीं दुकान छै
बिना द्येख्यां क्वे नि जौन
स्या बटै सीं मकान छै

पर धीरे धीरे मास घटी
हाड बड़ी ढांगि ह्वेगी
ऐंण गात ल्वोद छूट्यु
संग्ति बटिन नांगि ह्वैगि

सौ सिंगार छूट्यु सभि
अबत कटीं फांगि ह्वैगि
तन बदन मलीन ह्वेगी
अब त हांगि कांगि ह्वैगि

पैलि छै पट्वोळ अब त
धौण धरीं सांगि ह्वैगि
ब्योन्दु गौड़ि दानि ह्वे त
सभ्वी नजर बांगि ह्वैगी

क्वे ब्वना कुछ नि रै
क्वै ब्वना बैधि ह्वैगि
अपड़ा छा जु तौं बिचार्वी
नजर कैदि कैदि ह्वैगि

सो शरीर सक्या नि रै
अब त हिटै ट्येड़ि ह्वैगि
दौंळु टूट्यु गैण्डु छूट्यु
म्वोर मा कै फैडि ह्वैगि

यरां दैव अब क्या कन
सभ्वी परेशानि ह्वैगि
ब्योन्दु गौड़ि दानि ह्वे त
सभ्वी नजर बांगि ह्वैगी

अब त, तैंकि तिरफ धीरे धीरे
कुछ भी नि द्येखि तौन
रोज फजिल ह्वे त ब्योन्दु
सारि पुन अड्येथि तौंन

आयि कि नि आयि ब्यखुनि
कभि भी नि स्वेचि तौंन
तैंकि तरफ जन ब्वल्यंद कि
लाद्वे ल्येखि तौंन

ज्वनि मा लड्योत छै स्या
अब त हक्की कानि ह्वैगि
ब्योन्दु गौड़ि दानि ह्वै त
सभ्वी नजर बांगि ह्वैगी

धीरे धीरे योवनौ सिंगार
तैंकु ढळ्न बैठि
बीठा माकै डाळि सी स्या
सूखि ह्वेक झड़्न बैठि

अधीर ह्वे शरीर तैंकु
सैणा मा भी रड़्न बैठि
सारि पुन हकायी तपुन
ढिस्वाळ ढिस्वाळु पड़्न बैठि

एक दिन स्या सारि पुन
जनि गौळा चड़्न बैठि
खस रौड़ि भ्वां तनि
हाथ ख्वट्टा छ्वड़्न बैठि

भ्वां पड़ि खड़ि नि उठि
स्या सैरु गात तण्न बैठि
निराधार दैव सीं स्या
यकुलकार कण्न बैठि

पूस मौ की बार तख
जनि रुम्क पड़्न बैठी
ऐंच लगि बर्खा तनि
थोळा पाळु पड़्न बैठी

न कैकि मोह माया से
न कैकि प्रीत पीड़ से
संघर्ष रै कनी सैरि
रात ये शरीर से

लाटि गाजि मनै मन
सभि मौ धद्येन तैंन
जत्ति बर्खा नि ह्वै तति
आंसु भ्वां बगैन तैन
पुराणां दिन्वी याद करी
गौळा धै लगैन तैन

फजिल मंकौ होश नि रै
आंखा भ्वां फुराळ्यां तैंन
धौंण म्वौण छ्वेड़ि ख्वट्टा
सुद्दि खुलै डाळ्यां तैंन

न सांस लीनि दीनी अर
न दाड़ जो जुगाड़्या तैंन
 गौं वळा ऐन पर त
आंखा नि हुगाड़्या तैन

कैन ख्वट्टा भांच्या खड़ा
कैल करि धौंण ऐंच
कैल ब्वेलि मरी पर त
कैल ब्वेलि जूंदि छै च

यरां यरां ब्वेलि सबुन
यन्नि रौखा तनि रौखा
अभि जान्दि तभि जान्दि
थ्वोड़ा देर हौर रौखा

कैल ख्वट्टा भांच्या खड़ा
कैल करि धौण ऐंच
कैल ब्वेलि मरी पर
कैल ब्वेलि जून्दि छैंच

यरां यरां ब्वेलि सबुन
यनि रौखा तन्नि रौखा
अभि जान्दि तभि जान्दि
थ्वोडा देर हौर द्यौखा

कुछ देर बाद पुण्ड
यौ गैगि हक्कु गैगि
देखदा देखदी पूण्डि गौड़ि
फिर अजूं यखुलि ह्वैगी

पर दिन मा लगि जन्नि
घाम पूरा गात मा
स्या द्वारि सांस ल्यौण बैठी
आंखा ख्वेल्यां साथ मा

ख्वट्टा सो समाळ करिन
कन्दूड़ हिलैलि तैंन
आंखा ख्वेल्यां भ्वां बटिन
धौंण तक उठैलि तैंन

पर, जन्नि ब्यखुनि ह्वै, घाम
डूबी गै बिड्वाळ पर
तनि ढळ्न बैठि पूण्डि
पुगंड़ा मा ढिस्वाळ पर

रात पड़ी ठंडि हवा
पाळा दगड़ि पड़्न बैठि
तन्नि तन्नि पूण्डि गौड़ि
हाथ ख्वट्टा छ्वड़्न बैठी

न रै कैकि आंच मा स्या
न रै कैका अड्डा मा
हड्डि तक कांपि तैंकि
ततना राड़ा जड्डा मा

हारि चुकी आत्मबल
इच्छा खुर्द बुर्द करी
फिर अजूं शरीर तैंन
धर्ति कै सपूर्द करी

आज यकुलकार क्वै
चित्त बृत प्रांण नी
सु रूप लावण्य दगड़ि
गर्भ स्वाभिमान नी

सु भाव नी शरीर नी
सर्व शक्तिमान नी
पल्ये जन नीं च अबत
जान मा भी जान नी

न पल्यो जन लाड च
न पल्यो जन प्यार च
अब यम का समक्ष
खाली धौंण धरी त्यार च

या स्ये ब्योन्दु च जैंकि
कभि हांम छै धाम छै
जु बड्वी सीं बौरा़ण कभि
द्यो सीं धियांण छै

न मृत्यु ह्वै तैं बिचारी
अर न देख रेख ह्वै
रात ह्वै अचेत ह्वै स्या
दिन ह्वै सचेत ह्वै

कत्ति दिन तक तैंकु
य्वै क्रम जारि रै
कत्ति बीति तैं बिचारी
कत्ति देण्तदारी रै

सच्चि ब्वनू अपणां दिन
कत्ति बुरा द्येख्या तैंन
मौत तक नि मिली तत्ति
हाथ ख्वट्टा रेच्यां तैंन

वक्त भर बिज्वोग काटि
तत्ति दिन्वी तत्ति रात
हौड़ भर सड़्यांण ऐगि

कीड़ा पड़िन सैरा गात
यखरि सांस शब्द रैगि
आंखा च्यप्पु सभि ढकिन
पर यथ्या मा भी तैंका अजूं
प्राण मोक्ष ह्वे नि सकिन

निढाळ सी पड़ीं च भ्वां
न जान छै न प्रांण छै
कैल ब्वन्न आज कि या
ब्योन्दु कभि ज्वान छै

न पांणि बुंद पीनी अर न
कौळ घास खायी तैंन
एक पौंण मास पूरु
पुंगड़ा मा बितायी तैंन

जब पूस बर्खा मा तैंन
धीड़ख भर सगैं का खैन
तब जैक अपणां प्राण
पिंड से वडैन तैंन

आज ब्योन्दु मुक्त ह्वैगि
आज स्वर्ग बास ह्वैगि
तुम्हारा ल्यो स्या जन्नि ह्वो
म्येरा ल्यो स्या खास ह्वेगी

स्वोचणूं छूं आज हमारु
कति रौब दाब च
पर हमारि तुम्हारी ज्वनि
भी त ब्योन्दु गौड़ि चार च

चाहे कति चमकदार च
चाहे कति भड़कदार च
पर अंत हमारु तुम्हारु, सभू
ब्योन्दु गौड़ी चार च

या चार दिन्वी चाल च
या दूध सीं उमाळ च
या पाळैं सीं मरोड़ ज्वनि
भौत खतरनाक च

रंग अंग ढंग चाहे
भौत बूटादार च
पर कुछ नीं च ज्वनि सचि
कागजौ रुमाल च

ब्योन्दु त यो बिम्ब च
ब्योन्दु यौ प्रतीक च
पर ब्योन्दु गौड़ि हमूं तैं
उमर भरै सीख च

झूटि आन झूटि बान
झूटि शान मा निं रौंण
हमुन भी त ऐक दिन
ब्योन्दु गौड़ी चार ह्वोण

जैं ब्योन्दु कभि छौ
रूप रंगौ राज काज
स्ये ब्योन्दु गौड़ि मूड़ि
गौळा मा च मरीं आज

चार दिन्वा ठाट बाट
ज्वन्नि मा त सभ्वा रैन
पर ये रक्त हाड मांस को
गुमान कै कर्यूं नि चैन्द

या रूप रंग की बहार
सदानि कभि निं रौंण यींन
या माटा मकै चीज, मन्खि
माटा मा मिलौंण यींन

बस, पंचतत्व सार दगडि
कर्म उच्चु ह्वोण चैंद
मोक्ष पर निं बीतु यत्ति
यथ्या ध्यान द्योण चैन्द


रचनाकार: जगदम्बा चमोला

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