खुसुर-फुसुर
Garhwali Kavita by Jagdamba Chamola
---------------------------------संग्ति चौ चपट्ट त्राहिमाम ह्वैगि ऐ चुचौं
लौंकि संगति आग घमता घोर घाम ह्वै चुचौं
औण भी कनै च बर्खा बुन्द यीं जमीन मा
या धर्ति ज्वान बुड्या आसमान ह्वेगि ऐ चुचौं
ब्वे कु सैरु पो पराण ,अब भी पुंगड़ि कूड़ि मा
कथ्या सक्ति ब्वे कि अपुड़ि दाथि कण्डि जूड़ि मा
हमत गमलु मका बीज तक नि लै बचै सक्यां
आठ खारि स्योरु ब्वेन ज्यून्दु रौखि रूड़ि मा
संग्ति चौ चपट्ट.......
तिसमुळ्यों का सार कंठ सूखिगिन हिळांश का
भविष्य पत्र चुरमुरैग्या गोद मा खुळ्यांश का
न बाळा को बिबेक पळ्द कैकि जिकुड़ि कोख मा
न कागजों की कश्ती रै न खाळ खौळा चौक मा
पाणि का पिछ्वाड़ि सैरि काम धांणि गै चुचौं
गौळा तक सुख्यां ओंठुन भी पांणि पांणि कै चुचौं
संग्ति चौ चपट्ट.....
न सत्त रैगि धरति पर ना पांण गैंति कुल्ला पर
न लौ लगाव माटा से न ध्यान धौळा बुल्ला पर
न मोटा खांण पेण पर न टक च छांस चेंसा पर
यु मतलबी समौ च येकि टक च पैंसा पैंसा पर
ये पैसा दड़ि यु मनखि खालि चोर जार ह्वे चुचौं
गौ गरूर गरु गात भूमि भार ह्वे चुचौ
संग्ति चौ चपट्ट......
चड़चड़ान्दि द्वफरा गै त काळि शाम ह्वे चुचौं
गम का बादळौंन थ्वोड़ा रोकथाम कै चुचौं
आखरी उम्मीद छै त आंखि भ्वी बरस पड़िन
फिर भी धर्ति सूखि क्वोरु आसमान रै चुचौं
संग्ति चौ चपट्ट........
जल निगमा नळखा रैन खालि स्याणि का
पाड़ मा बिकीन रीता पीपा पाणि का
बण जंगळ या चार धार सार भूडुन
जौ भी पायि पांणि ल्यायि सारि जूड़्यून
संग्ति चौ चपट्ट...
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रचनाकार: जगदम्बा चमोला
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