Garhwali Kavita - ब्यालि तक जु निवासी छाई by Anoop Rawat

















ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।
जल्मभूमि छोड़ी की उ, बिरणों का यख चलिगे।।

हिटणु क्या जी सीख योन, सभ्या दौड़ी गैना।
बचपन अपडू काटी जख, वै घौर छोड़ी गैना।।
ज्वानि की रौंस मा अपडू, बचपन यखी छोडिगे।

ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।।


कूड़ी पुंगड़ी बांजी अर छोड़ियाल गौं गुठ्यार।
झणि किलै चुभण लग्युं, यूँ थै अपडू ही घार।।
डाली-बोटि पौण-पंछी देखा, धै लगान्दी रैगे।

ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।।

पुरखों की कूड़ी छोड़ी, किराया मकान मा रैणा छन।
खेती-बाड़ी छोड़ी ऐनि, यख ज़िंगदी धक्याणा छन।।
घौर बिटि भै-बंधु मा, यु पार्सल मगांदी रैगे।

ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।।

उकाल बिटि उन्दरी मा जाणा की, कनि दौड़ लगि च।
कुछ देखा-देखि त, कुछ मजबूरी भी च।।
क्वी पढ़ै कु क्वी रोजगार कु, बानु बणे छोड़ि गे।
ब्याली तक जु निवासी छाई, उ आज प्रवासी ह्वेगे।।



Writer: Anoop Singht Rawat

Village: Gween Malla, Bironkhal, Pauri Garhwali
Present Address: Indirapuram Gaziabad

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4 Comments

  1. पहाड कि पिडा को आप ने जो अपने बिचरो मै ब्यक्त किया है , उसके लिए आपका तहदिल से धन्यबाद जी

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  2. बहुत सुदंर पहाड़ की पीडा एक पहाड़ी ही समझी सकदु

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