तू फिर भी जिंदा रौ
Garhwali Kavita by Jagdamba Chamolaपूष हो या ज्यौठ
फिर भी तू मुड़ी न द्यौख
हौंसलों मा हौस रौख
भाव से भविष्य ल्यौख
द्यौख रौख या अड़्वोख
पर तू फिर भी जिंदा रौ
फिर भी जिंदा.....
अब न द्वार म्वोर तौक
कैका घर न सुर्ता रौख
अपुड़ु बाहु बल त द्यौख
कखि न ग्यौर घुन्डा ट्यौक
कर तु ल्यो सुमार बौट
पर तु फिर भी जिन्दा रौ
फिर भी जिंदा.....
औ तु हौर उब ऐंच
द्यौख त्वे मा सांस छैंच
मर्द मर्द क्वे नि मर्द
खैंच खैंच हौर खैंच
थ्येंच चाहे दाब पेंच
पर तु फिर भी जिंदा रौ
फिर भी जिंदा.....
कर यखौ तैं कुछ यु अपुड़ु
त्येरु मुल्क देश च
कुछ कदम त द्यौख त्येरी
जीत हार शेष च
अंत कुछ भी हो बिशेष
पर तु फिर भी जिंदा रौ
फिर भी जिंदा.....
संग्ति नीच दृष्टि ध्वोरा
गिद्ध च गरूड़ च
यौंका बीच त्येरु जिंदा
रौंणु ज्यू जरूर च
जन भी हो जुभी हो
पर तु फिर भी जिंदा रौ
फिर भी जिंदा.....
यिं द्रौंण भीष्म त्येरा नी
तु ब्यर्थ यों पुकार ना
यों कंस कौरबों का बीच
डौर ना तु हार ना
कर समर बचीक घौर
फिर भी जिंदा रौ
फिर भी जिंदा.....
असंख्य भीड़-भाड़ मा
या प्रभुत्व का प्रभाव मा
असाध्य रोग घाव हो
या नीती का स्वभाव मा
जन भी रै सकद मगर तु
फिर भी जिंदा रौ
फिर भी जिंदा.....
एक सुर्ता रौख
मुट्ठ बौट, ख्वट्टा ट्यौक
छ्वोड़ थौ थकान थौक
अब तु मुड़ि-मुड़ी न द्यौख
कर तु कुछ भी कर अल्यौख
पर तु फिर भी जिंदा रौ
फिर भी जिंदा.....
तलवार्यों की नाक पर
या दुश्मनों की काख पर
जो जमीन रड़दि हो या
प्राण होन हाथ पर
क्वे भी हो डगर मगर
तु फिर भी जिंदा रौ
फिर भी जिंदा.....
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रचनाकार: जगदम्बा चमोला
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